Tuesday, 10 December 2013

(BP12) आज साकी बनी ग़ज़ल खडी है महफ़िल में

रोज तुमसे मिलने की आदत अगर हो जायेगी
मौत के दीदार होते रूह भी रो जायेगी

आख़िरी पल में क़ज़ा होगी खड़ी जब सामने
जिंदगी इक दर्द के अहसास में खो जायेगी

अब ग़ज़ल मेरी खड़ी है बन के साकी बज्म में

मशविरा रिंदों का पाकर अब निखर वो जायेगी

देख कर उल्फत दिलों की मौत होगी शर्मसार
जिंदगी को जिस घड़ी छीनेगी खुद रो जायेगी


बात गुल सी हो हसीं या कड़वी चाहे खार सी
चेतना का बीज नव दिल में गज़क वो जायेगी

देखकर दीवानगी मे री ग़ज़ल लिखने की यूं1

मौत की रात, रात खुद व खुद सो जायेगी 


शायरों के कलाम की नदी होगी सागर 
पर  ग़ज़ल इसकी लाडली लहर हो जायेगी 

डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कालेज आफ फार्मेसी ..बभनान,गोंडा 

Tuesday, 22 October 2013

(BP15) बड़ी बातें मियां छोड़ों

बड़ी बातें मियां छोड़ों 

हमारा दिल न यूं तोड़ों

न हिन्दू है न वो मुस्लिम

वो हिंदी है उसे जोड़ो 

छलकती हैं जहाँ आँखें

मुझे रिन्दों वहां छोड़ों 

लगें दिलकश जो  शाखों पे 

हसीं गुल वो नहीं तोड़ों 

मिलेगी वक़्त पर कुर्सी 

नहीं सर बेबजह फोड़ो 


लुटी कलियाँ चमन की हैं 

दरिंदों को नहीं छोड़ों 

बचा कुर्सी वतन बेंचा 

शरारत ये जरा छोड़ों 

जहर है अब हवाओं में 

हवा का आज रुख मोड़ों 

डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान, गोंडा उ प्र 

Friday, 4 October 2013

(BP17) एक दिन मुझको रुलाओगे था मालूम मुझे

यूं मुझे भूल न पाओगे था मालूम मुझे
दिल में लोबान जलाओगे था मालूम मुझे
अपने अश्कों से भिगो बैठोगे मेरा दामन 
एक दिन मुझको रुलाओगे था मालूम मुझे

मैंने सीने से लगा रक्खा है तेरा हर ख़त
ख़त मगर मेरा जलाओगे था मालूम मुझे 

यूं तो वादा भी किया, तुमने कसम भी खाई.
गैर का घर ही बसाओगे था मालूम मुझे
सारे इलज़ाम ले बैठा तो हूँ मैं अपने सर
मिलने पर नजरें चुराओगे था मालूम मुझे 

डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कालेज आफ फार्मसी , बभनान, गोंडा उ प्र 

Friday, 13 September 2013

(BP19) आसान हो गयी है मौत

आसान हो गयी है मौत
कितना सहज था
कितना सरल था जीवन
जब रिश्ते सिर्फ नाम नहीं थे
जीवन्तता थी हर रिश्ते में
जब मामूली सी  खरोंच पर
घबराई माँ फाड़ कर बाँध देती थी अपना आँचल
नन्हे मासूम का तनिक से  क्रंदन पर
बेतहाशा भागते थे बैद्यों, हकीमों, डाक्टरों के घर
मासूम को गोद में लिए पिता मीलों-मील
बाबा की उंगलियाँ पकड़ चलता
दादी के साथ अठखेलियों में मस्त
नानी की कहानियों का नियमित श्रोता
और नाना की आँखों का तारा ..मासूम बचपन
कई मर्तबा दादा दादी नाना नानी बन जाने पर भी
सर पर हाथ बना रहता था माता पिता का
और एक सुखद अहसास ताउम्र बना रहता था
दादा दादी नाना नानी का 
उनके न होने पर भी ...............
बंधू बांधव, सखा- मित्र
बेटा- बहू, नाती- पोते
और भी न जाने सजीव रिश्ते
अपने विविध नामकरनों,
विविध रूपों में,
अपनी एक बिशेष हद
और अधिकार के साथ ,
रिश्तों की शक्ल में ढली तमाम देवियाँ ..
हर गम ख़ुशी, जश्न- मातम
में होते थे शरीक न जाने कितने अपने
चुटकियों में हो जाते थे पहाड़ से बोझिल तमाम काम
तब मौत बहुत कठिन थी
घूम जाता था एक एक चेहरा आंखो में
मौत का ख्याल आते ही
मृत्यु शय्या पर भी अनवरत बेचेनी के साथ
बाट जोहती आँखें देख लेना चाहती थीं जीभर
अपने हर प्रिय को आख़िरी बार
कुशल क्षेम भी पूछ लेती थी
आशीषों की झड़ी भी लगा देती थी जुवान
उठ जाती थीं बाहें कलेजे से लगाने को भी
सामर्थ्य के तनिक भी अहसास से
सबकी नजरों से नजरें मिलते हुए
रामचरित मानस के पाठ श्रवन
गंगा जल और तुलसी दल के साथ
जिह्वां के अंतिम साक्षात्कार के साथ
कितनी मुश्किल से निकले थे प्राण ..
पर आज
दोस्ती के भ्रम का पर्याय दोस्त
सीप के तरह अपने कवच में छुपे ईस्ट मित्रों रिश्तेदारों
भौतिक वादी युग में
हर चीज की आवश्यकता की तरह
स्त्री पुरुष का पति पत्नी में तब्दील रिश्ता
अपनी धुन, अपने सपनो ,में खोयी नयी फसल
थरथराती जुवान
सन्नाटों में घिरे मकान
धूमिल आँखें
जर्जर शरीर
और बेहद जरूरत के क्षणों में ही
बेहद तनहा और टूटा हर इंसान
आज भी सुनकर सांकल की आवाज
दौड़ता पड़ता है  दर की तरफ
और फिर उतनी तीव्रता से लौटता है
हवा को गरियाता हुआ
जानता है बख़ूबी
अब न चिट्ठियाँ आयेंगी न डाकिया
अब आयेंगे मेसेज और फ़ोन
जिनके अत्याधुनिकीकरण से बैठा नहीं पायेगा वो तालमेल
संपत्ति की उत्तराधिकरी होने की मजबूरी
या जीवन में कभी भी लिखी जा सकने वाला बरासतनामा 
रोक रहा है धर्मपत्नी को , बेमन  
और बच्चों के डालरों के आगे अर्थहीन है
 रुपयों के मोल बिकने वाली  पिता की संपत्ति भी
स्वार्थ में डूबे रिश्ते
अहसान फरामोश बच्चे
रिश्तों के नाम पर सिर्फ नाम के रिश्ते
तोड़ देते हैं तमामों भ्रम
जो  टूटा करते थे कपाल क्रिया में

जलती लाश के सर पर 
निज पुत्र के बॉस प्रहार से........ 
आज मौत से पहले बहुत पहले
टूट जाते हैं सारे भ्रम
बड़ी मुश्किल से कटते हैं
जिन्दगी के एक एक पल  
हर दिन पीते हुए अपने ही आंसू
इंतज़ार करता है इंसान  मौत का
सुहाग रात में नव वधु के सेज पर इंतज़ार की तरह
जीवन जितना कठिन हो रहा है
उतनी ही आसान हो रही है मौत !
 डॉ आशुतोष मिश्र निदेशक आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसीबभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेशमोबाइल न० ९८३९१६७८०१

Monday, 1 July 2013

(BP27) झुकी निगाह से जलवे कमल के देखते हैं

झुकी निगाह से जलवे कमल के देखते हैं
लगे न हाथ कहीं हम संभल के देखते हैं
ग़जल लिखी हमे ही हम महल मे देखते हैं
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
हया ने रोक दिया है कदम बढ़ाने से पर 
जरा मगर मेरे हमदम पिघल के देखते हैं
कहीं किसी ने बुलाया हताश हो हमको
सभी हैं सोये जरा हम निकल के देखते हैं
तमाम जद मे घिरी है ये जिन्दगी अपनी
जरा अभी गुड़ियों सा मचल के देखते हैं
हमें बताने लगा जग जवान हो तुम अब
अभी ढलान से पर हम फिसल के देखते हैं
कभी नहीं मुझे भाया हसीन हो रुसवा
खिला गुलाब शराबी मसल के देखते हैं  
अभी दिमाग मे बचपन मचल रहा अपने
किसी खिलोने से हम भी बहल के देखते हैं
हयात जब से मशीनी हुई लगे डर पर
चलो ए आशु जरा हम बदल के देखते हैं

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१




Thursday, 20 June 2013

(BP28) आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको

जिंदगी अपनी कई रंग दिखाए हमको  
कभी तडपाये कभी सीने लगाये हमको 

बज्म में शोख निगाहों ने जो सवाल किये
उन सवालों के कोई हल तो बताये हमको 

हाथ से छीन लिया करती जो सागर बढ़कर 
आज खुद हांथों से अपने ही पिलाये हमको 

मस्त  नजरों से यूं ही देख सारे रिन्दों को 
 कतरा कतरा यूं रोज साकी जलाये हमको 

जिस तरह हटती है दीवार से तस्वीर कोई 
 दिल के मंदिर से मेरा प्यार  हटाये हमको 

शाख पर बैठा दरख्तों की जवां पंख लिए 
 उड़ना तय कोई हौसला तो दिलाये हमको 

थोडा थोडा ही सही बातें सब  समझने लगे
 रोती माँ क्यूँ सुना के लोरी सुलाए हमको 


अपने चेहरे पे बड़ा नाज था हमें " आशु "
 आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको 


डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान ,गोंडा ,उ.प्र .
मोबाइल न 9839167801

Wednesday, 8 May 2013

(BP32) मैं नहीं बोल पाऊंगा




 मैं नहीं बोल पाऊंगा
एक दिन मेरे बायोलोजी के शिक्षक ने
भरी कक्षा में एक प्रश्न उठाया
बच्चों बिल्ली के गुणों को समझाओ 
इसके गुणों की किसी अन्य जीव से
उदाहरण सहित समानता बताओ
छात्रों ने कई गुण बताये
समानता में शेर और चीते के नाम भी सुझाए
अवसर पाकर मैंने भी मुह खोला
बिल्ली के गुण बताये
लेकिन जैसे ही बिल्ली को नेता के समरूप बतलाया
मेरा शिक्षक चिल्लाया
मूर्ख! नेता को बिल्ली बता रहा है
मैंने कहा नाराजगी मत दिखाइए
उदाहरण  पर गौर फरमाइए
चोरों के तरह दूध पीती बिल्ली पर
जब नजर पड़ जाती है
 बिल्ली छुप जाती है
जब चारों तरफ से घिर जाती है
आक्रामक हो जाती है
बिल्ली की जूठन किसी के काम नहीं आती है
बिल्ली माल खाए तो खाए नहीं तो धुलकाये
ऐसे  ही नेता जब घोटाले  करता पकड़ा जाता है
छुप जाता है
जब सीबीआई की जांच में घिर जाता है
आक्रामक हो जाता है
माल जब नहीं पचा पाता है तो स्विस बैंक पहुँचाता है
ये मामला 
यान को अन्तरिक्ष पहुचाते राकेट सा नजर आता है
यान अंतरिक्ष में और माल स्विस बैंक में जाता है
रॉकेट की तरह नेता भी बापस लौट आता है
यान तो यदा कदा बापस भी आ जाता है
माल कभी नहीं आता है
बिल्ली की तरह नेता
माल पचा पाए तो पचाता 
नहीं तो लुढकाता है  
और इसका भी जूठा
किसी के काम नहीं आता है
मैंने कहा यदि सहमत हों तो
सहमती में सर हिलाइए
मेरी पीठ थपथपाइए
गुरूजी बोले निजात कैसे मिलेगी
ये भी तो बताईये
मैंने कहा निजात तब मिल पायेगी
जब......
जब...कब....?
पहेली मत बुझाओ
जबाब बताओ
मैं बोला मैं नहीं बोल पाऊंगा
मुह का ताला नहीं खोल पाऊँगा
क्योंकि बीरता के प्रतीक स्वरुप किसी को
शेर बता दो तो सीना फुलाता है
बफादारी के प्रतीक स्वरुप
कुत्ता कह दो तो गुर्राता है
मगर हकीकत में कुत्ते सी बफादारी  का जज्वा ही
बिल्ली सी शैतानियत को कब्जे में लाएगा
इन बिल्ली नेताओं से देश
तब तक नहीं बच पायेगा
जब तक पूरा हिन्दुस्तान 
 ----- नहीं हो जाएगा

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८९०१








Saturday, 16 March 2013

(BP36) बलात्कारियों में वोटबैंक


  बलात्कारियों में वोटबैंक नजर आ रहा है
खादी ओढ़े शैतानो का जत्था चिल्ला रहा है
 कहते बलात्कार शब्द  शब्दकोष से हटाओ
   बलात्कार को सहर्ष सहमतिकार  बनाओ
    उम्र अठारह की बोझिल सोलह करवाओ
      गर बलात्कार हो भी जाए झुठलाओ
    सहमती से सहमती  का प्रमाण लाओ
   या फिर दवाब देकर सहमती लिखवाओ
  पुलिस के सर से फाइलों का बोझ हटाओ
  सरकार की उपलब्धि का परचम फहराओ
   पश्चिम का नंगापन पूरब में भी लाओ
 विकासशील  ही न रहो बिकसित हो जाओ
   पूर्वजों की कोई सीख अमल में न लाओ
पशु  से आदमी बने थे फिर पशु बन जाओ
कहते मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी
इससे होगी सिर्फ बर्बादी बर्बादी बर्बादी बर्बादी
डॉ आशुतोष मिश्र आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी,बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश ९८३९१६७८०१

Thursday, 16 August 2012

(BP43) भारत की आजादी को साल कितने हो गए


 पर्व यूँ मनाते  रहे-बूँदी  बँटवाते रहे 
भाषण सुनाते रहे, झंडे फहराते रहे
संसद में बैठकर बिधान भी बनाते रहे
कागजों पे देश का , विकाश भी दिखाते रहे
ओढ़ तन खादी दोनों हाथ आज जोड़े हुए
चुपचाप देश का वो सारा माल खाते रहे
पर जलते हुए झोपड़ों से आती हुई चीख बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
रोते हुए लाडलों की तोतली जुवान बोले
भारत की आजादी के साल कितने हो गए
भीग के पसीने में खेतों से किसान बोले
भारत की आजादी.......
तुम बैठे मुस्कुराते रहे यूं ही समझाते रहे
भाषणों में आजादी का मतलब बताते रहे
कागजों पे पुल और बाँध भी बनाते रहे
पर बस्तियों में जलते हुए बुझते  मिट्टी के चिराग बोले
भारत की....
कामियों की बाहों में जकड़ी लाचार बोले
भारत की ......
जिन्दा जली बहू की वो लाश  बार बार बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
फहरे हुए झंडे को यूं देख बृद्धा माँ ने कहा
मेरे लाडले बता दे कैसी ये आजादी है
घर में चिराग नहीं रोशनी के नाम पर
लाडले को घर से पुलिस साथ ले गयी
लाडली को झोंक दिया तन के व्यापार में
पति को भी खा गयी बंद कारावास में
तो कैसी ये आजादी है , सनी खून से क्यों खादी है
मेरे लाडले बता दे छोटी सी तू बात ये
आख से टपकते हुए माँ के आंशुओं ने कहा
भारत की.............................
बाप की गोदी में पड़ी बेटे की वो लाश बोले
भारत.............................
हम गीत यूं ही गाते रहे कविता सुनाते रहे
जाके राजघाट पे फूल भी चढाते रहे
तोपों की सलामी लेके यूं ही इतराते रहे
बापू, बाबू, चाचा की तस्वीर भी सजाते रहे
हाथ रखकर गीता पर कसमे भी खाते रहे
खुद को गरीबों का मसीहा भी बताते रहे
पर बृद्ध माँ के स्तनों से बहता हुआ दूध बोले
भारत................................
हाथों की वो मेंहदी, उजड़ी मांगों से सिन्दूर बोले
भारत..................................
नन्ही सी मासूम कली सीने से लिपट गयी
बोली भैया, बोलो भैया कुछ भी तो बोलो तुम
पल रहा है जेहन में मेरे भी एक सवाल एक
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
तो दिल के सितार के टूटे तार तार बोले
बहना मेरी मुझको ये ठीक से मालूम नहीं
होंगे कब लोग इस देश के आजाद मगर
कागजों पे पूरे पैसठ साल आज हो गए 

डॉ आशुतोष मिश्र/आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी/बभनान, गोंडा.उ.प्र. मोबाइल नंबर 9839167801


Thursday, 26 July 2012

(BP 44) जय सरकार


माल  पचाओ सारा लेना नहीं डकार 
जय सरकार 
जी भर करो गरीबों पे तुम अत्याचार 
जय सरकार 
देशभक्त फाँसी पे छोडो सब गद्दार 
जय सरकार 
जो पद चाहे जिसे दिला दो वोट जुटाकर 
जय सरकार 
संसद के लिए सांसदों का सिक्कों से तोलो भार 
जय सरकार 
मिले साइकिल भले नहीं दो सबको कार 
जय सरकार  
जनता की गढ़ी कमाई से खूब खरीदो तुम हथियार 
जय सरकार 
अपना माल बिदेशों में रख करो देश पे खूब उधार 
जय सरकार 
गाँव गाँव मनरेगा लाकर कर दो सभी युवा बेकार 
जय सरकार 
करो घोटाले कोई आये बीच अगर दो उसको मार 
जय सरकार 
नारी महिमा गीत गाओ और करो देह व्यापार 
जय सरकार 
युवा बृद्ध बालक नर नारी मरते अब होकर बीमार 
जय सरकार 
जनता के रुपये से सिक्का बाट करो सबका उद्धार 
जय सरकार 
मिले नौकरी भले न डिग्री बाट करो शिक्षा व्यापार 
जय सरकार 
सड़क बनाके कागज पे कर लो डामर का पैसा पार 
जय सरकार 
बेतन बढ़ा सभी का सर पर भारी रख दो कर का भार
जय सरकार  
बालकृष्ण को जेल भेज दो अफजल से कर आँखें चार 
जय सरकार 
भूखे तन में आग लगे सड़े अन्न का पारावार 
जय सरकार 
हिंद वतन में रोज हो रहा अब गायों का संहार 
जय सरकार 
माला खुद को पहनाकर कर लो अपनी जयजयकार 
जय सरकार 


डॉ   आशुतोष मिश्र 
निदेशक 
 आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज  ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान,गोंडा उत्तरप्रदेश 
मोबाइल न 9839167801
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