Saturday, 16 March 2013

(BP36) बलात्कारियों में वोटबैंक


  बलात्कारियों में वोटबैंक नजर आ रहा है
खादी ओढ़े शैतानो का जत्था चिल्ला रहा है
 कहते बलात्कार शब्द  शब्दकोष से हटाओ
   बलात्कार को सहर्ष सहमतिकार  बनाओ
    उम्र अठारह की बोझिल सोलह करवाओ
      गर बलात्कार हो भी जाए झुठलाओ
    सहमती से सहमती  का प्रमाण लाओ
   या फिर दवाब देकर सहमती लिखवाओ
  पुलिस के सर से फाइलों का बोझ हटाओ
  सरकार की उपलब्धि का परचम फहराओ
   पश्चिम का नंगापन पूरब में भी लाओ
 विकासशील  ही न रहो बिकसित हो जाओ
   पूर्वजों की कोई सीख अमल में न लाओ
पशु  से आदमी बने थे फिर पशु बन जाओ
कहते मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी
इससे होगी सिर्फ बर्बादी बर्बादी बर्बादी बर्बादी
डॉ आशुतोष मिश्र आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी,बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश ९८३९१६७८०१

Thursday, 16 August 2012

(BP43) भारत की आजादी को साल कितने हो गए


 पर्व यूँ मनाते  रहे-बूँदी  बँटवाते रहे 
भाषण सुनाते रहे, झंडे फहराते रहे
संसद में बैठकर बिधान भी बनाते रहे
कागजों पे देश का , विकाश भी दिखाते रहे
ओढ़ तन खादी दोनों हाथ आज जोड़े हुए
चुपचाप देश का वो सारा माल खाते रहे
पर जलते हुए झोपड़ों से आती हुई चीख बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
रोते हुए लाडलों की तोतली जुवान बोले
भारत की आजादी के साल कितने हो गए
भीग के पसीने में खेतों से किसान बोले
भारत की आजादी.......
तुम बैठे मुस्कुराते रहे यूं ही समझाते रहे
भाषणों में आजादी का मतलब बताते रहे
कागजों पे पुल और बाँध भी बनाते रहे
पर बस्तियों में जलते हुए बुझते  मिट्टी के चिराग बोले
भारत की....
कामियों की बाहों में जकड़ी लाचार बोले
भारत की ......
जिन्दा जली बहू की वो लाश  बार बार बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
फहरे हुए झंडे को यूं देख बृद्धा माँ ने कहा
मेरे लाडले बता दे कैसी ये आजादी है
घर में चिराग नहीं रोशनी के नाम पर
लाडले को घर से पुलिस साथ ले गयी
लाडली को झोंक दिया तन के व्यापार में
पति को भी खा गयी बंद कारावास में
तो कैसी ये आजादी है , सनी खून से क्यों खादी है
मेरे लाडले बता दे छोटी सी तू बात ये
आख से टपकते हुए माँ के आंशुओं ने कहा
भारत की.............................
बाप की गोदी में पड़ी बेटे की वो लाश बोले
भारत.............................
हम गीत यूं ही गाते रहे कविता सुनाते रहे
जाके राजघाट पे फूल भी चढाते रहे
तोपों की सलामी लेके यूं ही इतराते रहे
बापू, बाबू, चाचा की तस्वीर भी सजाते रहे
हाथ रखकर गीता पर कसमे भी खाते रहे
खुद को गरीबों का मसीहा भी बताते रहे
पर बृद्ध माँ के स्तनों से बहता हुआ दूध बोले
भारत................................
हाथों की वो मेंहदी, उजड़ी मांगों से सिन्दूर बोले
भारत..................................
नन्ही सी मासूम कली सीने से लिपट गयी
बोली भैया, बोलो भैया कुछ भी तो बोलो तुम
पल रहा है जेहन में मेरे भी एक सवाल एक
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
तो दिल के सितार के टूटे तार तार बोले
बहना मेरी मुझको ये ठीक से मालूम नहीं
होंगे कब लोग इस देश के आजाद मगर
कागजों पे पूरे पैसठ साल आज हो गए 

डॉ आशुतोष मिश्र/आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी/बभनान, गोंडा.उ.प्र. मोबाइल नंबर 9839167801


Thursday, 26 July 2012

(BP 44) जय सरकार


माल  पचाओ सारा लेना नहीं डकार 
जय सरकार 
जी भर करो गरीबों पे तुम अत्याचार 
जय सरकार 
देशभक्त फाँसी पे छोडो सब गद्दार 
जय सरकार 
जो पद चाहे जिसे दिला दो वोट जुटाकर 
जय सरकार 
संसद के लिए सांसदों का सिक्कों से तोलो भार 
जय सरकार 
मिले साइकिल भले नहीं दो सबको कार 
जय सरकार  
जनता की गढ़ी कमाई से खूब खरीदो तुम हथियार 
जय सरकार 
अपना माल बिदेशों में रख करो देश पे खूब उधार 
जय सरकार 
गाँव गाँव मनरेगा लाकर कर दो सभी युवा बेकार 
जय सरकार 
करो घोटाले कोई आये बीच अगर दो उसको मार 
जय सरकार 
नारी महिमा गीत गाओ और करो देह व्यापार 
जय सरकार 
युवा बृद्ध बालक नर नारी मरते अब होकर बीमार 
जय सरकार 
जनता के रुपये से सिक्का बाट करो सबका उद्धार 
जय सरकार 
मिले नौकरी भले न डिग्री बाट करो शिक्षा व्यापार 
जय सरकार 
सड़क बनाके कागज पे कर लो डामर का पैसा पार 
जय सरकार 
बेतन बढ़ा सभी का सर पर भारी रख दो कर का भार
जय सरकार  
बालकृष्ण को जेल भेज दो अफजल से कर आँखें चार 
जय सरकार 
भूखे तन में आग लगे सड़े अन्न का पारावार 
जय सरकार 
हिंद वतन में रोज हो रहा अब गायों का संहार 
जय सरकार 
माला खुद को पहनाकर कर लो अपनी जयजयकार 
जय सरकार 


डॉ   आशुतोष मिश्र 
निदेशक 
 आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज  ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान,गोंडा उत्तरप्रदेश 
मोबाइल न 9839167801
\

Friday, 6 July 2012

(BP 45) आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब


आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब
कानपुर, लखनऊ क्योंकि सूखे हुए हैं साहिब
जान दे देंगे तेरी आँखों से ना निकलेंगे
मार्च से जून हुआ टूटे हुए हैं  साहिब
तेरी आँखों को कैद-ए-काला पानी जो कहते
मेरी नजरों में वो झूठे  हुए हैं साहिब
हम तेरे मेहमां चंद  रोज  यहाँ
क्यूँ खफा है क्यूँ रूठे हुए हैं साहिब ?
जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना 
शीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब






डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उ.प्र.

Wednesday, 30 May 2012

(BP 46) नाम दिल पर जो लिखा उसको मिटाकर देखो

एक दिन  अपने पराये को भुलाकर देखो 
एक दिन यूं ही नजर हमसे मिलाकर देखो 


मेरे सीने में जो दिल है, वो धडकता भी है 
आह निकलेगी कोई, इसको जलाकर देखो 


नाम तुमने जो मिटाया,था रेत पर लिक्खा
दिल पर लिक्खा कोई  हर्फ़ मिटाकर देखो 


जुल्फें यूं गुल से संवारी  हैं रोज ही तुमने
मेरी तस्वीर कभी दिल में सजाकर देखो


तेरे रुखसार पर जुल्फें तो बहुत भाती हैं 
तुम मगर रुख से ये जुल्फें हटाकर देखो 


जाम पर जाम पिए होश में मगर हम हैं
हसरत-ए-दिल है आँखों से पिलाकर देखो 
ww


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य  नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801


एक दिन  अपने पराये को भुलाकर देखो 



Saturday, 26 May 2012

(BP 47) वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें


रंग--तस्वीरें अभी वही हैं,हैं वही बातें 
अमन--चैन से कटती नहीं अभी रातें 

दल बदल जाते उसूलात  बदलते ही नहीं  
 कोई महफूज़ रहे कैसे, चारसू लगीं घातें

लहू जिसका बहा है स्वेद बन के खेतों में
मोती पैदा किये,अश्कों की मिलीं सौगातें

स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात--दिन
उसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें

होती  हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी  यहाँ
वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें

मिटेगा "आशु ",मिटेंगे उसके नक़्शे कदम  
वतन की राह पे मुमकिन हों मुलाकातें  





डॉ आशुतोष  मिश्र 
आचार्य  नरेन्द्र  देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801
         
A2/16

2122 1122 1122 22,,112 कोई तस्वीर न बदली हैं न बदलीं बातें आज भी चैनो अमन से नहीं कटती  रातें रंग-ओ-तस्वीरें अभी वही हैं,हैं वही बातें  अमन-ओ-चैन से कटती नहीं अभी रातें   दल बदल जाते उसूलात  बदलते ही नहीं   कोई महफूज नहीं चारों तरफ हैं घातें  कोई महफूज़ रहे कैसेचारसू लगीं घातें खून जिसका है पसीने सा बहा खेतों में मो ती पैदा करें अश्को की मिलें सौगातें लहू जिसका बहा है स्वेद बन के खेतों में मोती पैदा किये,अश्कों की मिलीं सौगातें  रातों दिन जिसके बदन से है पसीना बहता याद आती उसे भी होंगी हसीं बरसातें स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात-ओ-दिन उसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें ताजपोशी तो दरिंदो की यहाँ होती है  होती  हैवानोंदरिंदों की ताजपोशी  यहाँ वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें हर सिपाही जो है सच्चा को हवालातें हैं  आशू के साथ मिटे नक़्शे कदम भी उसके राख बन बिखरा जहा चाहो मुलाकाते हैं  मिटेगा "आशु ",मिटेंगे उसके नक़्शे कदम   वतन की राह पे मुमकिन न हों मुलाकातें 

Saturday, 19 May 2012

(OB 109) जिंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है (BP 48)


ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना 
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है

वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है

काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा  ज़िंदगी का  राज भी है

कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए
सामने राजा ने जिनके दिया रख ताज भी है 

काम करता जो बुरे लोग हैं नफरत करते
काम गर अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है   

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी , बभनान गोइड, उत्तरप्रदेश 271313
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blospot.in

Thursday, 10 May 2012

(BP 49) क्या करें तीर-ए-नजर छुप के चला देते है

अपनी पलकों को उठाकर  के गिरा देते हैं
बस घडी भर में  हमें अपना  बना लेते हैं


उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं  
और  वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं 


हसरत -ए-दिल ये हमारी जवां नहीं होती
क्या करें तीर-ए-नजर छुप के चला देते है  


छुप के लिखते हैं  मेरा नाम रेत पर तनहा 
हल्की आहट पे मेरी  रेत- रेत बना देते हैं


मुफलिसों की तरह हम उम्र भर तरसते रहे 
और एक  वो हैं जो  गुहर यूं ही लुटा देते हैं


बर्क जब- जब भी उसने खोले किताबों के हैं
सूखे गुल जो याद दिलाते, वो भुला देते हैं 


उनकी आँखों  के समंदर तो बड़े  कातिल हैं 

देखो 'आशु' ये  बजूद -ए-दरिया मिटा देते हैं






डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज  ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०  9739167801

A2/18

2122 1122 1122 22 अपनी पलकों को उठाकर  के गिरा देते है करके ऐसा वो मेरे होश उड़ा देते हैं बस घडी भर में  हमें अपना  बना लेते हैं  जिनकी जुल्फों को कभी गुल से सजाया हमने खुद वो गुल हो के भी क्यूं हमको सजा देते हैं  उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं   और  वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं   दिल की हसरत वो जवां पर कभी नहीं लाते वो तो बस तीरे नजर छुप के चला देते है   हसरत -ए-दिल ये हमारी जवां नहीं होती क्या करें तीर-ए-नजर छुप के चला देते है     छुप के लिखते हैं  मेरा नाम रेत पर तनहा  हल्की आहट पे मेरी  रेत- रेत बना देते हैं   मुफलिसों की तरह हम उम्र भर तरसते रहे  और एक  वो हैं जो  गुहर यूं ही लुटा देते हैं   बर्क जब- जब भी उसने खोले किताबों के हैं सूखे गुल जो याद दिलातेवो भुला देते हैं    उनकी आँखों  के समंदर तो बड़े  कातिल हैं  देखो 'आशुये  बजूद -ए-दरिया मिटा देते हैं


२१२२ २१२२ २१२२ २१२
अंडर प्रोसेस तक्तीअ अभी करना है
अपनी पलकों को उठाकर के गिरा देते हैं वो
दो घड़ी में गैरों को अपना बना देते हैं वो

उनकी जुल्फों को गुलों से हम सजाना चाहते
और इक गुल हो के खुद हमको सजा देते हैं वो

हसरते दिल को जवाँ होने से रोका लाख था
क्या करें पर तीर नजरों के चला देते हैं वो

छुप वो लिखते नाम मेरा बालू पर तन्हाई में
सुन के आहट नाम बालू में मिला देते हैं वो

मुफलिसों जैसा ही जीवन हमने काटा है सदा
और आँखों से गुहर यूं ही लुटा देते हैं वो

बर्क उसने जब भी खोले हैं किताबों के यहाँ
याद सूखे गुल दिलाते पर भुला देते हैं वो

उनकी आँखों के समंदर तो बड़े कातिल हैं
हस्ती को दरिया सी पल भर में मिटा देते है वो

F47
















Saturday, 28 April 2012

(BP 50) वाह क्या सौगात दी है

वाह क्या सौगात दी है
मांगते हरदम रहे हो
प्यार भी, सद्भाव भी
पूरा समर्पण भी,
हम बहाते रहे अपना  खून अब तक
शान पर,झूठी, तुम्हारी आन पर....
पलकें अपनी मूँद के चलते रहे
लगी कितनी ठोकरें
गिरते रहे..
दिया तुमने क्या हमें
सोचा कभी?
रोटियों को हम तरसते,
अश्क आँखों से बरसते
पाँव कीचड में सने हैं
टूटा दिल हैं अनमने हैं
झोपड़े; अपने महल थे
जैसे थे; अच्छे भले थे
क्या हुआ, तुमको खले क्यों  
मंजिलों  पे मंजिलें ,तुमने खड़ी की
झोपड़ों पे पाँव  रखकर
क्या हुआ? ए  कार वालों
क्यूँ दिया उसको  कुचल
कर झोपड़ों से बेदखल
क्या बिगाड़ा  था , भला मासूम ने
लूट ली इज्जत भरे बाज़ार में....
आसुओं  का बाँध
नफरत, द्वेष, दरिया दर्द का
ये ढेर लाशों के 
वाह! क्या सौगात दी हैं




कॉलेज जीवन की एक कृति


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801



A1/35
वाह क्या सौगात दी है
मांगते हरदम रहे हो
प्यार भीसद्भाव भी
पूरा समर्पण भी,हम बहाते रहे अपना  खून अब तक
शान पर,झूठीतुम्हारी आन पर....पलकें अपनी मूँद के चलते रहे
लगी कितनी ठोकरें

गिरते रहे..दिया तुमने क्या हमें
सोचा कभी?रोटियों को हम तरसते,अश्क आँखों से बरसते
पाँव कीचड में सने हैं
टूटा दिल हैं अनमने हैं
झोपड़ेअपने महल थे
जैसे थेअच्छे भले थे
क्या हुआतुमको खले क्यों मंजिलों  पे मंजिलें ,तुमने खड़ी की
झोपड़ों पे पाँव  रखकर
क्या हुआ  कार वालों
क्यूँ दिया उसको  कुचल
किया  झोपड़ों से बेदखल
क्या बिगाड़ा  था , भला मासूम ने
लूट ली इज्जत भरे बाज़ार में....आसुओं  का बाँध
नफरतद्वेषदरिया दर्द का
ये ढेर लाशों के
वाहक्या सौगात दी हैं


















Wednesday, 18 April 2012

(BP 51) जिस घडी उससे जुदा होने की घडी आयी

जिस घडी उससे जुदा  होने  की घडी  आयी
दरिया- अश्कों का बहा, याद भी बड़ी आयी 

सीढ़ियों पे ही मुझे रोका था  कुछ कहने को 
होंठ हिल पाए ना थे  अश्कों की झड़ी आयी 

आँखों- आँखों में  आँखों ने सगाई  कर ली 
दर-ए -दिल पाती जाने कबसे है पड़ी आयी 

दो बदन, एक जिस्म- एक जां, ना हो पाए 
दरम्याँ धर्म-ओ-रिवाजों की हथकड़ी आयी 

हमने सोचा था की अरमानो के बम फूटेंगे 
हाय री किस्मत , मेरे हाथों  ये लड़ी आयी 

आशु तनहा ही मैकदे में मय कशी करते 
जिंदगी में है उनके जबसे  फुलझड़ी आयी 


डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज  ऑफ़ फार्मेसी
बभनान , गोंडा, उत्तरप्रदेश 
मोबाइल न० 9839167801

A2/13
2122 1122 1212  22,,112
 जिस घडी उससे जुदा  होने  की घडी  आयी
दरिया- अश्कों का बहायाद भी बड़ी आयी  
सीढ़ियों पे ही मुझे रोका इक दफा उसने 
होंठ हिल पाए ना थे  अश्कों की झड़ी आयी  
आँखों आँखों में ही आँखों ने की सगाई जब
आँखों- आँखों में ही  आँखों ने सगाई  कर ली 
दर-ए -दिल पाती जाने कबसे है पड़ी आयी
दो बदन चाह के भी एक जां न हो पाये
दो बदनएक जिस्म- एक जांना हो पाए 
दरम्याँ धर्म-ओ-रिवाजों की हथकड़ी आयी 
हमने सोचा था की अरमा के ही  बम फूटेंगे 
हाय किस्मत मेरी हाथों  में ये लड़ी आयी  
आशु तनहा ही करें मयकशी यूं सारी शब्
लगता जीवन में कोई उसके फुलझडी आयी 
आशू  तनहा ही मैकदे में मय कशी करते 
जिंदगी में है उनके जबसे  फुलझड़ी आयी 



लिखिए अपनी भाषा में