Monday, 1 July 2013

(BP27) झुकी निगाह से जलवे कमल के देखते हैं

झुकी निगाह से जलवे कमल के देखते हैं
लगे न हाथ कहीं हम संभल के देखते हैं
ग़जल लिखी हमे ही हम महल मे देखते हैं
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
हया ने रोक दिया है कदम बढ़ाने से पर 
जरा मगर मेरे हमदम पिघल के देखते हैं
कहीं किसी ने बुलाया हताश हो हमको
सभी हैं सोये जरा हम निकल के देखते हैं
तमाम जद मे घिरी है ये जिन्दगी अपनी
जरा अभी गुड़ियों सा मचल के देखते हैं
हमें बताने लगा जग जवान हो तुम अब
अभी ढलान से पर हम फिसल के देखते हैं
कभी नहीं मुझे भाया हसीन हो रुसवा
खिला गुलाब शराबी मसल के देखते हैं  
अभी दिमाग मे बचपन मचल रहा अपने
किसी खिलोने से हम भी बहल के देखते हैं
हयात जब से मशीनी हुई लगे डर पर
चलो ए आशु जरा हम बदल के देखते हैं

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१




Thursday, 20 June 2013

(BP28) आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको

जिंदगी अपनी कई रंग दिखाए हमको  
कभी तडपाये कभी सीने लगाये हमको 

बज्म में शोख निगाहों ने जो सवाल किये
उन सवालों के कोई हल तो बताये हमको 

हाथ से छीन लिया करती जो सागर बढ़कर 
आज खुद हांथों से अपने ही पिलाये हमको 

मस्त  नजरों से यूं ही देख सारे रिन्दों को 
 कतरा कतरा यूं रोज साकी जलाये हमको 

जिस तरह हटती है दीवार से तस्वीर कोई 
 दिल के मंदिर से मेरा प्यार  हटाये हमको 

शाख पर बैठा दरख्तों की जवां पंख लिए 
 उड़ना तय कोई हौसला तो दिलाये हमको 

थोडा थोडा ही सही बातें सब  समझने लगे
 रोती माँ क्यूँ सुना के लोरी सुलाए हमको 


अपने चेहरे पे बड़ा नाज था हमें " आशु "
 आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको 


डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान ,गोंडा ,उ.प्र .
मोबाइल न 9839167801

Wednesday, 8 May 2013

(BP32) मैं नहीं बोल पाऊंगा




 मैं नहीं बोल पाऊंगा
एक दिन मेरे बायोलोजी के शिक्षक ने
भरी कक्षा में एक प्रश्न उठाया
बच्चों बिल्ली के गुणों को समझाओ 
इसके गुणों की किसी अन्य जीव से
उदाहरण सहित समानता बताओ
छात्रों ने कई गुण बताये
समानता में शेर और चीते के नाम भी सुझाए
अवसर पाकर मैंने भी मुह खोला
बिल्ली के गुण बताये
लेकिन जैसे ही बिल्ली को नेता के समरूप बतलाया
मेरा शिक्षक चिल्लाया
मूर्ख! नेता को बिल्ली बता रहा है
मैंने कहा नाराजगी मत दिखाइए
उदाहरण  पर गौर फरमाइए
चोरों के तरह दूध पीती बिल्ली पर
जब नजर पड़ जाती है
 बिल्ली छुप जाती है
जब चारों तरफ से घिर जाती है
आक्रामक हो जाती है
बिल्ली की जूठन किसी के काम नहीं आती है
बिल्ली माल खाए तो खाए नहीं तो धुलकाये
ऐसे  ही नेता जब घोटाले  करता पकड़ा जाता है
छुप जाता है
जब सीबीआई की जांच में घिर जाता है
आक्रामक हो जाता है
माल जब नहीं पचा पाता है तो स्विस बैंक पहुँचाता है
ये मामला 
यान को अन्तरिक्ष पहुचाते राकेट सा नजर आता है
यान अंतरिक्ष में और माल स्विस बैंक में जाता है
रॉकेट की तरह नेता भी बापस लौट आता है
यान तो यदा कदा बापस भी आ जाता है
माल कभी नहीं आता है
बिल्ली की तरह नेता
माल पचा पाए तो पचाता 
नहीं तो लुढकाता है  
और इसका भी जूठा
किसी के काम नहीं आता है
मैंने कहा यदि सहमत हों तो
सहमती में सर हिलाइए
मेरी पीठ थपथपाइए
गुरूजी बोले निजात कैसे मिलेगी
ये भी तो बताईये
मैंने कहा निजात तब मिल पायेगी
जब......
जब...कब....?
पहेली मत बुझाओ
जबाब बताओ
मैं बोला मैं नहीं बोल पाऊंगा
मुह का ताला नहीं खोल पाऊँगा
क्योंकि बीरता के प्रतीक स्वरुप किसी को
शेर बता दो तो सीना फुलाता है
बफादारी के प्रतीक स्वरुप
कुत्ता कह दो तो गुर्राता है
मगर हकीकत में कुत्ते सी बफादारी  का जज्वा ही
बिल्ली सी शैतानियत को कब्जे में लाएगा
इन बिल्ली नेताओं से देश
तब तक नहीं बच पायेगा
जब तक पूरा हिन्दुस्तान 
 ----- नहीं हो जाएगा

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८९०१








Saturday, 16 March 2013

(BP36) बलात्कारियों में वोटबैंक


  बलात्कारियों में वोटबैंक नजर आ रहा है
खादी ओढ़े शैतानो का जत्था चिल्ला रहा है
 कहते बलात्कार शब्द  शब्दकोष से हटाओ
   बलात्कार को सहर्ष सहमतिकार  बनाओ
    उम्र अठारह की बोझिल सोलह करवाओ
      गर बलात्कार हो भी जाए झुठलाओ
    सहमती से सहमती  का प्रमाण लाओ
   या फिर दवाब देकर सहमती लिखवाओ
  पुलिस के सर से फाइलों का बोझ हटाओ
  सरकार की उपलब्धि का परचम फहराओ
   पश्चिम का नंगापन पूरब में भी लाओ
 विकासशील  ही न रहो बिकसित हो जाओ
   पूर्वजों की कोई सीख अमल में न लाओ
पशु  से आदमी बने थे फिर पशु बन जाओ
कहते मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी
इससे होगी सिर्फ बर्बादी बर्बादी बर्बादी बर्बादी
डॉ आशुतोष मिश्र आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी,बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश ९८३९१६७८०१

Thursday, 16 August 2012

(BP43) भारत की आजादी को साल कितने हो गए


 पर्व यूँ मनाते  रहे-बूँदी  बँटवाते रहे 
भाषण सुनाते रहे, झंडे फहराते रहे
संसद में बैठकर बिधान भी बनाते रहे
कागजों पे देश का , विकाश भी दिखाते रहे
ओढ़ तन खादी दोनों हाथ आज जोड़े हुए
चुपचाप देश का वो सारा माल खाते रहे
पर जलते हुए झोपड़ों से आती हुई चीख बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
रोते हुए लाडलों की तोतली जुवान बोले
भारत की आजादी के साल कितने हो गए
भीग के पसीने में खेतों से किसान बोले
भारत की आजादी.......
तुम बैठे मुस्कुराते रहे यूं ही समझाते रहे
भाषणों में आजादी का मतलब बताते रहे
कागजों पे पुल और बाँध भी बनाते रहे
पर बस्तियों में जलते हुए बुझते  मिट्टी के चिराग बोले
भारत की....
कामियों की बाहों में जकड़ी लाचार बोले
भारत की ......
जिन्दा जली बहू की वो लाश  बार बार बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
फहरे हुए झंडे को यूं देख बृद्धा माँ ने कहा
मेरे लाडले बता दे कैसी ये आजादी है
घर में चिराग नहीं रोशनी के नाम पर
लाडले को घर से पुलिस साथ ले गयी
लाडली को झोंक दिया तन के व्यापार में
पति को भी खा गयी बंद कारावास में
तो कैसी ये आजादी है , सनी खून से क्यों खादी है
मेरे लाडले बता दे छोटी सी तू बात ये
आख से टपकते हुए माँ के आंशुओं ने कहा
भारत की.............................
बाप की गोदी में पड़ी बेटे की वो लाश बोले
भारत.............................
हम गीत यूं ही गाते रहे कविता सुनाते रहे
जाके राजघाट पे फूल भी चढाते रहे
तोपों की सलामी लेके यूं ही इतराते रहे
बापू, बाबू, चाचा की तस्वीर भी सजाते रहे
हाथ रखकर गीता पर कसमे भी खाते रहे
खुद को गरीबों का मसीहा भी बताते रहे
पर बृद्ध माँ के स्तनों से बहता हुआ दूध बोले
भारत................................
हाथों की वो मेंहदी, उजड़ी मांगों से सिन्दूर बोले
भारत..................................
नन्ही सी मासूम कली सीने से लिपट गयी
बोली भैया, बोलो भैया कुछ भी तो बोलो तुम
पल रहा है जेहन में मेरे भी एक सवाल एक
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
तो दिल के सितार के टूटे तार तार बोले
बहना मेरी मुझको ये ठीक से मालूम नहीं
होंगे कब लोग इस देश के आजाद मगर
कागजों पे पूरे पैसठ साल आज हो गए 

डॉ आशुतोष मिश्र/आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी/बभनान, गोंडा.उ.प्र. मोबाइल नंबर 9839167801


Thursday, 26 July 2012

(BP 44) जय सरकार


माल  पचाओ सारा लेना नहीं डकार 
जय सरकार 
जी भर करो गरीबों पे तुम अत्याचार 
जय सरकार 
देशभक्त फाँसी पे छोडो सब गद्दार 
जय सरकार 
जो पद चाहे जिसे दिला दो वोट जुटाकर 
जय सरकार 
संसद के लिए सांसदों का सिक्कों से तोलो भार 
जय सरकार 
मिले साइकिल भले नहीं दो सबको कार 
जय सरकार  
जनता की गढ़ी कमाई से खूब खरीदो तुम हथियार 
जय सरकार 
अपना माल बिदेशों में रख करो देश पे खूब उधार 
जय सरकार 
गाँव गाँव मनरेगा लाकर कर दो सभी युवा बेकार 
जय सरकार 
करो घोटाले कोई आये बीच अगर दो उसको मार 
जय सरकार 
नारी महिमा गीत गाओ और करो देह व्यापार 
जय सरकार 
युवा बृद्ध बालक नर नारी मरते अब होकर बीमार 
जय सरकार 
जनता के रुपये से सिक्का बाट करो सबका उद्धार 
जय सरकार 
मिले नौकरी भले न डिग्री बाट करो शिक्षा व्यापार 
जय सरकार 
सड़क बनाके कागज पे कर लो डामर का पैसा पार 
जय सरकार 
बेतन बढ़ा सभी का सर पर भारी रख दो कर का भार
जय सरकार  
बालकृष्ण को जेल भेज दो अफजल से कर आँखें चार 
जय सरकार 
भूखे तन में आग लगे सड़े अन्न का पारावार 
जय सरकार 
हिंद वतन में रोज हो रहा अब गायों का संहार 
जय सरकार 
माला खुद को पहनाकर कर लो अपनी जयजयकार 
जय सरकार 


डॉ   आशुतोष मिश्र 
निदेशक 
 आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज  ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान,गोंडा उत्तरप्रदेश 
मोबाइल न 9839167801
\

Friday, 6 July 2012

(BP 45) आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब


आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब
कानपुर, लखनऊ क्योंकि सूखे हुए हैं साहिब
जान दे देंगे तेरी आँखों से ना निकलेंगे
मार्च से जून हुआ टूटे हुए हैं  साहिब
तेरी आँखों को कैद-ए-काला पानी जो कहते
मेरी नजरों में वो झूठे  हुए हैं साहिब
हम तेरे मेहमां चंद  रोज  यहाँ
क्यूँ खफा है क्यूँ रूठे हुए हैं साहिब ?
जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना 
शीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब






डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उ.प्र.

Wednesday, 30 May 2012

(BP 46) नाम दिल पर जो लिखा उसको मिटाकर देखो

एक दिन  अपने पराये को भुलाकर देखो 
एक दिन यूं ही नजर हमसे मिलाकर देखो 


मेरे सीने में जो दिल है, वो धडकता भी है 
आह निकलेगी कोई, इसको जलाकर देखो 


नाम तुमने जो मिटाया,था रेत पर लिक्खा
दिल पर लिक्खा कोई  हर्फ़ मिटाकर देखो 


जुल्फें यूं गुल से संवारी  हैं रोज ही तुमने
मेरी तस्वीर कभी दिल में सजाकर देखो


तेरे रुखसार पर जुल्फें तो बहुत भाती हैं 
तुम मगर रुख से ये जुल्फें हटाकर देखो 


जाम पर जाम पिए होश में मगर हम हैं
हसरत-ए-दिल है आँखों से पिलाकर देखो 
ww


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य  नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801


एक दिन  अपने पराये को भुलाकर देखो 



Saturday, 26 May 2012

(BP 47) वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें


रंग--तस्वीरें अभी वही हैं,हैं वही बातें 
अमन--चैन से कटती नहीं अभी रातें 

दल बदल जाते उसूलात  बदलते ही नहीं  
 कोई महफूज़ रहे कैसे, चारसू लगीं घातें

लहू जिसका बहा है स्वेद बन के खेतों में
मोती पैदा किये,अश्कों की मिलीं सौगातें

स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात--दिन
उसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें

होती  हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी  यहाँ
वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें

मिटेगा "आशु ",मिटेंगे उसके नक़्शे कदम  
वतन की राह पे मुमकिन हों मुलाकातें  





डॉ आशुतोष  मिश्र 
आचार्य  नरेन्द्र  देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801
         
A2/16

2122 1122 1122 22,,112 कोई तस्वीर न बदली हैं न बदलीं बातें आज भी चैनो अमन से नहीं कटती  रातें रंग-ओ-तस्वीरें अभी वही हैं,हैं वही बातें  अमन-ओ-चैन से कटती नहीं अभी रातें   दल बदल जाते उसूलात  बदलते ही नहीं   कोई महफूज नहीं चारों तरफ हैं घातें  कोई महफूज़ रहे कैसेचारसू लगीं घातें खून जिसका है पसीने सा बहा खेतों में मो ती पैदा करें अश्को की मिलें सौगातें लहू जिसका बहा है स्वेद बन के खेतों में मोती पैदा किये,अश्कों की मिलीं सौगातें  रातों दिन जिसके बदन से है पसीना बहता याद आती उसे भी होंगी हसीं बरसातें स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात-ओ-दिन उसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें ताजपोशी तो दरिंदो की यहाँ होती है  होती  हैवानोंदरिंदों की ताजपोशी  यहाँ वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें हर सिपाही जो है सच्चा को हवालातें हैं  आशू के साथ मिटे नक़्शे कदम भी उसके राख बन बिखरा जहा चाहो मुलाकाते हैं  मिटेगा "आशु ",मिटेंगे उसके नक़्शे कदम   वतन की राह पे मुमकिन न हों मुलाकातें 

Saturday, 19 May 2012

(OB 109) जिंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है (BP 48)


ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना 
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है

वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है

काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा  ज़िंदगी का  राज भी है

कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए
सामने राजा ने जिनके दिया रख ताज भी है 

काम करता जो बुरे लोग हैं नफरत करते
काम गर अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है   

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी , बभनान गोइड, उत्तरप्रदेश 271313
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blospot.in

लिखिए अपनी भाषा में