Friday 24 June 2011

(A1/55) तुम जब भी आते हो, चाँद छुप जाता है

तुम जब   भी आते हो,   चाँद  छुप  जाता है    
तुम जैसे   शरमाते,    वो   भी    शर्माता है

जब तक नहीं हो    तुम,   चाँद इतराता है 
जब   देखे   रूप   तेरा      नजरें   झुकाता   है

हम किससे नाता जोडें, दिल किसका तोड़ दें 
सोच सोच बातें यही  जिया     घबराता    है 

तुम दिल  की धड़कन हो, होंठो का गीत हो
मगर वो भी तारों  की  महफ़िल सजाता है 

चांदो    ने   मिलकर    के   नींद  चैन लूटा  है 
एक    तरसाता   हमें      दूजा     जलाता   है   
   




 डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801




Wednesday 22 June 2011

(A1/56) चाँद, तारों से कभी बात कर

चाँद,     तारों    से     कभी  बात कर
मलिका-ए-हुश्न      मुलाकात      कर

कल   अमावस थी गवारा  था    मुझे
अब्र में    छुप,  ना  वही   हालात   कर

शह पे शह,  अब रोक   भी दो खेल
उकता चुका, अब तो मेरी  मात कर

तेरे   प्रश्नों  के तुझे     दूंगा      जवाब
एक दफा     मुझसे तू  सवालात   कर

प्यासा कोई मर    रहा है प्यास     से
नाजनीना,  कुछ तो    ख़यालात कर



डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी  
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०; 9839167801




Monday 20 June 2011

(A1/57) बला की खूबसूरत है अदा हर जिसकी कातिल है

बला  की   खूबसूरत   है   अदा     हर   जिसकी   कातिल     है
जवां   हर  दिल की  धड़कन है  दीवानों की  वो मंजिल है

खुले    मैखानो      सी    आँखें    छलकते    जाम    से     आंसू
फकत    चर्चा    उन्ही  का    जिनके   गालों  पे  हंसी  तिल  है

अरे   परियों  की  शहजादी    इनायत    हम  पे   कर    इतनी
नजर  भर  देख    ले    हमको   हुई    क्यों   इतनी    बेदिल  है

झलक     दिखला     के  इक  अपनी  हुए  गुम  वो  कहाँ  जाने
यूं    ही  क्या  खेलनें  को  बस,    मिला  उनको  मेरा  दिल है

सजाई     चान्दिनी     सी    शब्  जला  दिल मैंने  अपना    ही
न    सोचा      था, नजर   के  तीरों  वाली  इतनी  बुजदिल  है


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
A1/57
१२२२ १२२२ १२२ १२२२
बला  की   खूबसूरत   है   अदा     हर   जिसकी   कातिल     है
जवां   हर  दिल की  धड़कन है  दीवानों की  वो मंजिल है

खुले    मैखानो      सी    आँखें    छलकते    जाम    से     आंसू
फकत    चर्चा    उन्ही  का    जिनके   गालों  पे  हंसी  तिल  है

अरे   परियों  की  शहजादी    इनायत    हम  पे   कर    इतनी
नजर  भर  देख    ले    हमको   हुई    क्यों   इतनी    संग दिल  है

झलक     दिखला     के  इक  अपनी  हुए  गुम  वो  कहाँ  जाने
यूं    ही  क्या  खेलनें  को  बस,    मिला  उनको  मेरा  दिल है

सजाई     चान्दिनी     सी    शब्  जला  दिल मैंने  अपना    ही
    सोचा      थानजर   के  तीरों  वाली  इतनी  बुजदिल  है


डायरी पेज २०१३ १९ जनवरी 

Sunday 12 June 2011

(BP 67) उमर भर कैद दिल की बस सजा हैं इन गुनाहों में

देखते       आइना      क्यों    हो    जरा   देखो    निगाहों  में
सवारेंगे    तुम्हे    हम    खुद   चले   भी   आओ    बांहों   में

नहीं     शिकवा    हमें    है    कोई    पल   भर जिंदगानी  से
मगर   शै    बस    वो    पल    गुजरे  हसीनो की पनाहों में

उल्फत   में       सजा-ए-मौत     मत    कर   यूं   मुक़र्रर तू
उमर    भर    कैद    दिल की बस सजा   हैं इन गुनाहों  में

मिले हो जब भी महफिल में लगे हो तुम बड़े दिलकश
हया    फिर    हमसे   है    कैसी    मिले हो जब भी राहों में

खताएं      ज़िन्दगी    की    कुछ    बहुत    ही     खूबसूरत हैं
खता    कर   बैठे, उलझे      जब  तिलिस्मी इन अदाओं में

समझती   जिनको   दुनिया  है अभी तक बूंद-ए-शबनम ही
मेरी     आँखों    के आंसू है जो     बिखरे   हैं     फिजाओं में




डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801






Wednesday 8 June 2011

(BP 68) आखिरी ख़त है, जतन से रखना

आखिरी    ख़त   है,   जतन   से    रखना
 कह     दिया   हमने,   हमें     था कहना   

 दिल के   जज्वात   दिल  में ही    रखना 
बिजलियों   का   शहर   है    तुम   बचना 

ख्वाब    टुटा    है     मेरा    रंज   न     कर 
फिर    बना    लूँगा    आशियाँ     अपना    

बंद    कर    लो    भले   ही   घर   के    दर 
दिल    मगर   अपना    खुला   ही    रखना 

सपने      हर     रोज      टूटते    हैं     यहाँ 
अपने     दिल    में    तू     हौसला   रखना 

दुनिया    मुझको    समझती है मुजरिम
तुम न   मुनसिब   सा   फैसला    करना


अपने  हर  चाहने  वाले  को  समर्पित 


डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801


(BP 69) मुझको रोका तेरी आँखों से क्षलकती मय ने

एक   बादा    तेरा   करना   फिर    मुकर    यूं   जाना A
कभी   अपना    बताना ,  कभी     कहना   बेगाना  AA

कुछ    सवालात    मेरे   दे    दो   तुम   जवाब   मुझे A
उम्र भर न सही   पल   भर तो ठहर     ही जाना AA

मेरी     हर   बात    पे   बस   तेरी     यही    ख़ामोशी A
मुझको   पागल    करेगी    देगी    बना      दीवाना AA

मुझको रोका तेरी   आँखों   से   क्षलकती    मय ने  A
 वरना जिस    मोड़   पे खड़ा ; वहीँ     है   मैखाना AA
  
अपनी जिद पर मैं अगर आया तो   पक्षताओगे A
पेश कर   दूंगा   भरी   भीड़,   दिल    का नजराना AA

चान्दिनी  शब् है, जमी पे उतर भी अब    आओ A
रोज   अच्क्षा   नहीं   फलक  पे   यूं   ही   इतराना  A


प्रिय    मित्र धीरज  कौशिक   को समर्पित


डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801

Monday 6 June 2011

(BP 69) रास्ता तुमको दिखा देंगे ये मैखाने का

मैं     भी   डरता था तुझे खौफ था ज़माने का A
फिर मेरे शीने पे एक तमगा भी दीवाने का AA


गिरजा जाना तेरा, सर मंदिर में झुकाना मेरा A
बन     गया   एक सबब भीड़    में खो जाने का    AA

हमको      जकड़े    हुए    जंजीरें     रिवाजों की हैं    A
सामने मसला है कुछ खोकर के कुछ पाने का  AA

आज    हर     सिम्त    सजाई   है   मैंने   अश्कों से   A
रास्ता     तुमको    दिखा      देंगे   ये   मैखाने     का AA

प्यार    को    रूह   से महसूस   करो   यूं   ही      तुमA
होना     था    बस     यही   अंजाम   इस   फ़साने का 

डॉ  आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा. उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८०१

Sunday 5 June 2011

(A1/59) चमड़ी बदली पर न करतूतें पुरानी


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करती जख्मों को हरा फिर नयी कहानी है       
हुक्मरानो की समझ आज भी ब्रितानी है
सोये लोगों पे बरसात लाठियों की ये
करती बस मुल्क की इज्जत को पानी पानी है
देता जो मुल्क था पैगाम बस अमन का ही
आज दुनिया को दी तुहफे में क्या निशानी है
अब भी कुछ बदला नहीं हैं जरा  संभल जाओ
गर न बदलो तो समझ लेना लहू पानी है
जलियाँ बाला वो हमें बाग़ याद फिर आया
चमड़ी बदली तो है करतूत पर पुरानी है
कर गयी   जख्मों   को हरा   फिर ये कहानी 
हिंद    में    रहते,     मगर क्या हिन्दोस्तानी?

सोये लोगों   पे ये बरसात    लाठियों की   क्यूँ
 मुल्क    की इज्जत    हुई   है    पानी       पानी

देता पैगाम-  -अमन मुल्क मेरा दुनिया को
आज दी    दुनिया    को तोहफे  में क्या निशानी 

अब     भी    कुछ    बदला    नहीं   जाओ संभल  

कुछ    नहीं   होगा   लहू      जब    होगा     पानी














कर गयी   जख्मों   को हरा   फिर ये कहानी 
हिंद    में    रहते,     मगर क्या हिन्दोस्तानी?

सोये लोगों   पे ये बरसात    लाठियों की   क्यूँ
 मुल्क    की इज्जत    हुई   है    पानी       पानी


देता पैगाम-ए  -अमन मुल्क मेरा दुनिया को
आज दी    दुनिया    को तोहफे  में क्या निशानी 

अब     भी    कुछ    बदला    नहीं   जाओ संभल  
कुछ    नहीं   होगा   लहू      जब    होगा     पानी

बाग़     जलियाँ     वाला    फिर   से   याद आया
चमड़ी     बदली    पर      न    करतूतें    पुरानी  



डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801

(A1/60) अब क़यामत ही सही दिल तो बहल जाने दो

दिल का दरिया,    हुआ    है  बर्फ, पिघल जाने दो
कुछ गुहर दिल     के खजाने से निकल जाने दो

आज ये     पलकें तुम अपनी खुली यूं ही रखना
डूब के आँखों में,     दिल दिल से बदल जाने दो

खूब समझाया तुमने दिल को रिवाज़-ए  -उल्फत
फिर भी गर बच्चे सा  मचले तो मचल  जाने दो

झुक के उठना तेरी   पलकों  का एक क़यामत है
अब  क़यामत  ही  सही    दिल तो बहल जाने दो

मैकदे   ने     भी   यूं   ही   छोड़ा     लड़खड़ाते    हुए
अपनी    बांहों   का   सहारा   दो   संभल    जाने दो



डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
babhnan
मोबाइल न० 9839167801


(BP 70) उसने मेहँदी से हथेली को सजाया क्यूँ है

आइना     तुमने    मुझे    आज   दिखाया  क्यूँ   है
रु-ब-रु    मुझको    हकीक़त  से    कराया  क्यूँ है 

अश्क के बदले   लहू निकला   मेरी   आँखों से 
उसने मेहँदी    से हथेली   को   सजाया    क्यूँ है 

जब शमा ही तेरी महफिल से नदारत थी तो 
तुमने परवाने को महफिल  में बुलाया क्यूँ है 
  
इक ग़लतफ़हमी सबब थी तमाम खुशियों की
मोतियों   को भी यूं    अशआर बनाया    क्यूँ    है

मेरी    तस्वीर    पे तस्वीर    लगा    लेते     कोई
मेरी     तस्वीर    को यूं दिल से   हटाया क्यूँ है



डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८०१ Blog
आइना तुमने मुझे आज दिखाया क्यूँ है
रूबरू मुझको हकीकत से कराया क्यूँ है
अश्क के बदले लहू निकले मेरी आँखों से
उसने हाथों को हिना से यूं रचाया क्यूँ है
शम्मा ही जब तेरी महफ़िल से नदारत थी तो
तुमने परवाने को महफ़िल में बुलाया क्यूँ है
मेरी तस्वीर पे तस्वीर लगा लेते कोई
मेरी तस्वीर को दिल से यूं हटाया क्यूँ है
नन्हा इक दीप हवा से ये सवालात करे
तीरगी से ए हवा हाथ मिलाया क्यूँ है
मैं जो हूँ तो मेरी मा रोज सुने तू ताने
बोल कुछ बोल तो माँ मुझ को बचाया क्यूँ है
मांग को भरके हथेली को हिना से रचकर
सोचती थी कि पिया मेरा पराया क्यूँ है

E23 

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