Sunday, 18 March 2012

(BP 58) दिल धडकता है तेरा ,राज छुपकर रखना

मेरी आँखों में जब ख्वाब  सुनहरा होगा
मुझको मालूम तेरे घर पे भी पहरा होगा 


आप शर्मायेंगे छुपकर के कहीं चिलमन में
जब मेरे यार मेरे सर पर भी सेहरा होगा 


मेरे शेरों का बजन उस घडी बढेगा खुद
जब मेरे सामने गुल सा तेरा चेहरा होगा


इश्क-ओ -हुश्न जब भी अंधे होंगे उल्फत में 
ठीक उस वक़्त जमाना भी ये बहरा होगा 


दिल धडकता है तेरा ,राज छुपाकर रखना
वरना ऐ "आशु" जख्म दिल पे भी गहरा होगा 
A2/9

२१२२ ११२२ ११२२ २२ मॉडिफाइड
जब मेरी आँखों में इक ख्वाब सुनहरा होगा 
तब तेरे घर पे भी मालूम है पहरा होगा 
आप शर्मायेंगे छुपकर के कहीं चिलमन में
जिस घड़ी सर पे बंधा मेरे भी सहरा होगा 
शायरी में भी मेरी जान तभी आयेगी
जब मेरे सामने गुल सा तेरा चेहरा होता

इश्क- -हुश्न जब भी अंधे होंगे उल्फत में
ठीक उस वक़्त जमाना भी ये बहरा होगा

दिल धडकता है तेरा राज न खुल जाये कभी


दिल पे गर जख्म हुआ जख्म ये गहरा होगा 


डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801 
A2/8
२१२२ ११२२ ११२२ २२ मॉडिफाइड 
जब मेरी आँखों में इक ख्वाब सुनहरा होगा 
तब तेरे घर पे भी मालूम है पहरा होगा  
आप शर्मायेंगे छुपकर के कहीं चिलमन में
जिस घड़ी सर पे बंधा मेरे भी सहरा होगा  
 शायरी में भी मेरी जान तभी आयेगी 
जब मेरे सामने गुल सा तेरा चेहरा होगा
इश्क़ ओ हुश्न जो अंधे हुये हैं उल्फत में 
बेखबर थे की जमाना भी ये बहरा होगा 
ये न सोचा था जमाना भी ये बहरा होगा  
इश्क-ओ -हुश्न जब भी अंधे होंगे उल्फत में
 ठीक उस वक़्त जमाना भी ये बहरा होगा 
दिल धडकता है तेरा राज न खुल जाये कभी 

दिल पे गर जख्म हुआ जख्म ये गहरा होगा

Tuesday, 13 March 2012

(BP 59) आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं

आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं
लाल किले पे झंडा भी फहराने लगे हैं
बुलबुलों को  पिंजरों से उड़ने लगे हैं
भूखे बच्चे पेटों को सहलाने लगे हैं
रोते हुए झुनझुने बजाने लगे हैं
आजादी के गीत .....................
नानी कहती थी यहाँ मणिधारी नाग हैं
हमने तो देखा है सत्ताधारी नाग हैं
कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
जात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं
दूध की जगह चारा पचाने लगे हैं
भूखे बच्चों को गिनती सिखाने लगे हैं
आजादी के गीत.........................
खूनी और दरिन्दे तो सरताज हो गए
भोली जनता चिडी, नेता बाज हो गए
घोटालों की लगी देश को यारों कैसी खाज
शांत सरीफों की बस्ती में अब गुंडों का राज
मानवता की होलियाँ जलाने लगे हैं
आदमी ही आदमी को खाने लगे हैं
लम्बे चौड़े बादों से लुभाने लगे हैं
आजादी के गीत ...........................
अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
अब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
शकुनी  फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं
आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं



कॉलेज जीवन की रचना
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801





Tuesday, 6 March 2012

(BP60) होली है भाई होली है



रंग बिरंगी है रंगोली
मस्तानो की निकली टोली
कहीं अबीर गुलाल कहीं पर
चली धडल्ले भंग की गोली
 पिचकारी से  छूटे गोली 
रहे सलामत कैसे  चोली 
ईना, मीना, डीका, रीना 
नहीं  बचेगी कोई भोली 
आज अधर खामोश रहेंगे 
आज रंग हैं सबकी बोली 
आज  नहीं छोड़ेंगे भौजी 
बुरा न मानो है ये होली



 होली पर आप सभी को मेरे और मेरे परिवार की और से हार्दिक शुभकानाएं ...होली के बिबिध रंगों  की तरह आपका जीवन   रंगबिरंगा बना रहे ....खुशियाँ आपके कदम चूमे ..आपके अंतर का कलुष हटे.......प्रेम का साम्राज्य चहु ओर स्थापित हो ..पुनः इन्ही शुभकामनाओं के साथ 


डॉ आशुतोष मिश्र 
निदेशक 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान , गोंडा . उत्तरप्रदेश 
मोबाइल न०  9839167801

Sunday, 8 January 2012

(A1/29) सबसे भ्रष्ट ही, हो गया है हमारा सरदार

चोरों के एक गाँव में
चोरों ने पंचायत बिठाई
एक नेता चुनने की बात उठाई
किसी ने दी सर्बाधिक चोरियों   की दुहाई  
किसी ने बड़ी चोरियां गिन्वायीं
हर  करतूत  के अंक  निर्धारित हुए
ही अव्वल थे वो नेता साबित हुए
बात जब ये चर्चा में आई
बेईमानो, डकैतों ,लुटेरों
बलात्कारियों  ,भ्रस्तों, घूसखोरों
अत्याचारियों और देशद्रोहियों ने
अपने-अपने ग्रामों में अलख जगाई
नेता बनाने की कवायद्  चलाई
चोरों की तरह
सबसे बड़ा अत्याचारी, भ्रस्ताचारी
बलात्कारी  और व्यभिचारी  
सिरमौर बनाये गए
बक्त के साथ हर  ग्राम  ने अपना  कारोबार  बढाया
परिणाम  स्वरुप
लुटेरा चोर के
और बलात्कारी  ब्याभिचारी के करीब आया
धीरे धीरे ये मसला गरमाया
हर आदमी ने सारे गुणों  को  अपनाया  
चोर   लुटेरे बलात्कारी व्याभिचारी
एक रंग में ढल गए
दिल से दिल, ग्राम से ग्राम मिल गए
बड़े बड़े शहर  और देश बन गए
फिर सबने मिलकर नेत्रित्व का मसला उठाया
न चोरी की चर्चा हुई
न भ्रस्टाचार का मसला चाय
जो सर्वश्रेष्ठ  आलराउंडर  था
उसने अपना दावा मजबूत बनाया
तबसे ये सिलसिला चला आ रहा है
हर चुनाव इसका परिणाम बता रहा है
फिर किसी रोज भीड़ में कोई फुसफुसाया
इस व्यवस्था को  गलत बताया
मैंने उसे समझाया
व्यवस्था को  गलत बता रहे हो 
बबूल पे आम का ख्वाब सजा रहे हो
हम ईमानदार   होते तो ईमानदार चुनते
देशभक्त होते तो देशभक्ति  पे मरते
नेत्रित्व के लिए तो सर्वश्रेष्ठ  के पास जायेंगे
चोरों का नेता चोरों को  ही बनायेंगे
क्या शिक्षक पढ़ा रहा है ?
क्या दुधिया दूध में जहर नहीं मिला रहा है ?
क्या हर शख्श  उपरी कमाई  का स्वप्न नहीं सजा रहा है?
क्या शोधकर्ता शोध के सही परिणाम ला रहा है?
क्या संगीतकार   धुन  नहीं चुरा  रहा है ?
क्या लेखक दूसरों की लेखनी के शब्द नहीं घुमा रहा है?
नकली दबाएँ कौन बना रहा है?
सड़कों का डामर कौन पचा रहा है?
पेड़ किसने काटे, कौन लगा रहा है ?
ऐसे अनगिनत प्रश्नों के जबाब में
हर आदमी उलझ जायेगा
दिल आंसुओ से भर जायेगा
पहले खुद बुरे संस्कार दिल से दिमाग से हटाओ
फिर परिवार को  समझाओ
क्रांति की अलख देश में जगाओ
सदियों का मैला तब तक नहीं हटेगा
जब तक हर इंसान नहीं जागेगा
पुलिश  और नेता पे तोहमत लगाने से
देश नहीं सुधर जायेगा
ये आसमान से नहीं टपके हैं
ये हमारे तुम्हारे घरो के बच्चे हैं
जब सबने मिलकर भ्रष्टता की कर दी है हद पार
तो सबसे भ्रष्ट ही हो गया है हमारा सरदार

वंशधर परंपरा के चहेतों
अपने दिल दिमाग से विकृतियों   को हटाओ
वर्ना पछताओगे
तुम्हारी  जिंदगी के  दिन तो जैसे तैसे कट  जायेंगे
पर तुम्हारे नौनिहाल पैदा   होते ही मर जायेंगे !!





डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801

Tuesday, 27 December 2011

(A/1/42) नए वर्ष में नए गीत हों

           नए वर्ष में नए गीत हों

           नए राग हों,नए क्षंद हों

           भाषाओँ, मजहब के नामों

          कभी वतन में जंग ना हों


                जलकर खुद यूं रोज दिवाकर 

                जग को रोशन करता है 

                हम जुगनू ही सही

                हौसले कभी हमारे मंद न हों 


         उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम

         जहाँ कहीं हो मन घूमें

         देशों की सीमाएं झूठी

         उन्मुक्त उड़ाने बंद ना हों


                  मसला जब तय होना हो

                  दुनिया की भूखी जनता का

                  नेताओं के बीच कभी भी

                  होली सा हुरदंग न हो

 

         प्रलय रोकना है तो हमको

         मिलकर बृक्ष लगाने होंगे

         ओजोन कवच के छेद कभी

         भाषण  बाज़ी से बंद न हों

 

 

एक बार पुनः ह्रदय की अनंत गहरायिओं में श्रजित शुभकामनाओं के साथ कामना करता हूँ की नव वर्ष २०१२ आपके जीवन में खुशियों का पर्याय बनकर आये ..सौभाग्य और सफलता आपके कदम चूमे...आप और आपका परिवार स्वस्थ और प्रसन्न रहते हुए प्रगति के नए सोपान तय करे ..इन्ही शब्दों के साथ ..............हमेशा ही आपका 


डॉ आशुतोष मिश्र

निदेशक

आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801

Sunday, 25 December 2011

(A/36) जंगल बेदना

जंगल बेदना 


सदय होने का मिला परिणाम क्या
मनु को बचाने का मिला प्रतिदान क्या
आध्यात्म फूला-फला  जिसकी गोद में
वो जल रहा है क्यों स्वयं अब क्रोध में
क्यूँ कुपित न हो उजाड़ा जब उसे
दोष मनु पुत्रों का देगा फिर किसे
गैर न मानी मनु संतति कभी
सैंकड़ों पर पुत्र उसके और भी
मौन तरु जो झूमते मस्ती में अपने
चट्टाने पाहन चूमती , लहराती तटिनी
गर्जना, चिंघाड़ उसके लाडलों की
चौकड़ी मासूम से मृग दलों की
झर-झराते सैंकड़ों झरने भी अल्हड 
बन झाड़ियाँ झर्बेरियां कैसे सुघड़
ढलती निशा में उंघते जंगल
रात सारी गूंजते जंगल
अपनी धुन हैं गीत भी संगीत  भी
दुर्गम किला, राजा, प्रजा, मंत्री सभी 
मनुज को दी प्राण बायु, फल- फूल भी
बृष्टि की बूंदे भी, कंद मूल भी
सोचते मनु पुत्र पर क्या? राम जाने!
जंगलों ने तो दिए अनुपम खजाने
किन्तु  क्यों बिष घोलते मनु पुत्र अब
मारते निज स्वार्थ बश वन पुत्र अब
साम्राज्य जंगल का सिमटता जा रहा है
सीने में पर्वत के अब बम फट रहे हैं
चट्टानों  पर भी बरसते सतत घन
बेदना करते बयां अब मूक पाहन
मनु पुत्र अपनी श्रेष्ठता दिखला  रहा है
सच! मौत का ही जाल बुनता जा रहा है
नित्य आयेंगे भूकंप होंगे भूस्खलन
ललकारेंगी   तटिनी, चट्टानें रौद्र पाहन
उम्मीद न कर ए मनु अब शान्ति की
आग तूने ही लगाई क्रान्ति की
मायने ना जीत के न हार के
इतराने का परिणाम खुद ही देख लो
भूकंप, गर्मी, बाढ़ कुछ तो सोच लो
अब भी समय है -हे मनु कुछ जान लो
प्रकृति की शक्ति जरा पहचान लो
क्योंकि सबने भूल की ऐसा नहीं है
बोये सबने शूल भी ऐसा नहीं है
मनु के सदय जो पुत्र हैं; वो मान लें
पागलों को मारना हैं ठान लें
संधि का सन्देश लेके स्वयं जाएँ
नंगे गिरि को बस्त्र पहनाएं
अतिक्रमित साम्राज्य जब हम बापस करेंगे
हम भी  हँसेंगे   और जंगल भी हँसेंगे  हसेंगे





कॉलेज जीवन के कृति




डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, 9839167801



















Tuesday, 20 December 2011

(A1/37) मौत की झोली

मौत की झोली 
आलू, भिन्डी, गोभी के साथ
मौत की झोली घर आयी 
हमने चटखारे लेकर खाई
बचे रोटी, चावल, सब्जी  के छिलके
कर दिए फिर झोली के हवाले
छत  से मुस्कुराते हुए नीचे गिराई
पर गिरते ही मौत की झोली मुस्कुराई
सड़क पर गिरते ही अपना जाल बिछाया
भोजन की खुश्बू  को हवा में फैलाया
पास बैठी गाय  को खुश्बू भा गयी
भूखी गाय पास आ गयी
झोली समेत सब चबा गयी
लेकिन बैठते ही घबरा गयी
मौत की झोली आंत में जम गयी
रोटी गाय को महँगी  पड़ गयी
गाय कुछ देर खूब तडपी
फिर बेदम होकर सड़क पर लुढकी
फिर कीटाणुओं ने मृत शारीर पर छावनी बनायी
बीमारी की मिसाइलें चलाईं
बीमारी महामारी बनकर छा गयी
बस्ती के कई लोगों को खा गयी
झोली मौत की मुस्कुराती रही
आंत में बैठकर जश्न मनाती रही
आंत भी धीरे- धीरे गल गयी
जिंदगी की सौत बाहर निकल गयी
बरसात उसे खेत तक ले आयी
परत -दर- परत मिटटी चढ़ाई
जब पौधों की जडें इससे टकराईं
इसका कुछ नहीं बिगाड़ पायीं 
पौधे खड़े- खड़े मुरझा गए
अकाल के दानव गाँव  में आ गए
मानवता दम तोड़ने लगी
दानवता सर चढ़कर बोलने लगी
सुकून फिर भी न मिला
तो जहरीली गैसों को रिसाया
सैंकड़ों जीवों का कर गयी सफाया
अपनी विजयश्री का गीत गया
लेकिन तभी एक बिद्वान से टकरा गयी
तांडव की कथा उसे समझ में आ गयी
उसने एक अभियान छेड़ दिया
पूरे  देश से इन झोलियों को इकठ्ठा किया
किन्तु  ज्ञान अनुभव  से फिर मात खा गया 
इनके ढेर में आग लगा गया
झोली मरते- मरते कहर ढा गयी
ओजोने  की परत में छेद बना  गयी
तबसे; रोज अल्ट्रावायलेट किरनें 
धरती पर आती हैं 
धरती का तापमान बढ़ाती हैं
जिन्दगी की हर सांस 
संकट में घिरती जा रही है
पर धन्य है मनु संतति
मौत की झोली में सामान ला रही है
मौत का तांडव बार-बार दोहरा रही है




कॉलेज जीवन की एक कृति
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०  9839167801



































Monday, 12 December 2011

(A1/38) किसी लकीर को छोटा कैसे बनाओगे?

किसी लकीर को छोटा कैसे बनाओगे?


बचपन में शिक्षक ने
एक लकीर को श्यामपट पर बनाया था 
फिर उसे 
अनुभव, ज्ञान, उपलब्धियों और शिक्षा का
प्रतीक बताकर 
एक सवाल उठाया था
प्यारे बच्चों 
कैसे तुम इस लकीर को छोटा बनाओगे?
बच्चों को मौन देखकर 
शिक्षक ने युक्ति बताई थी
उसने एक बड़ी लकीर 
छोटी के बगल में बनाई थी
बात बच्चों को बेहद रास आयी थी
सदियों तक बच्चों ने ये युक्ति अपनाई 
अपनी लगन, मेहनत से 
पसीने की बूंदे बहाईं  थीं
बढ़ती हुई छोटी लकीर से;
अपनी लकीर बड़ी बनाई थी
किन्तु समय के साथ
ज्ञान, बिज्ञान, राजनीत, चिकित्सा,
खेलों,
तकरीबन हर क्षेत्र में
 होशियारों की
नयी जमात आयी
जिसने अपनी लकीर तो समय के साथ बढ़ायी
पर दूसरों की लकीर भी घटाई
हर क्षेत्र में उपलब्धियां  बढ़ती गयीं
लकीर बढ़ने वालों की शान में कसीदे कढ़ती गयीं
ज्ञान, बिज्ञान, शिक्षा ,चिकित्सा 
क्षेत्रों की उपलब्धियां त्रिशंकु हो गयीं
शोध  पत्रों  के अम्बार  लग  गए
आम आदमी के सपने;
शोधकर्ताओं के गलों के
सोने चांदी के तमगो की भेट चढ़ गए
उपलब्धियां मृग- मरीचिका हो गयीं
शोध पत्र शब्दों का छलावा हो गए
ज्ञान बिज्ञान के रहस्य  
रहस्यों   में उलझकर खो गए
किन्तु लकीर बढ़ाने की कला में
महारत हासिल हो गयी
नए होशियारों की फ़ौज
नए नए करतब दिखा रही है
अब नाहक पसीना   नहीं बहा रही है
अब हर बढ़ती  लकीर को मिटा रही है
ज्ञान बिज्ञान के रहस्य, रहस्य रह गए
खेल, संस्कृति, राजनीती, 
सब नए पैकर में ढल गए
जो  बढती  हर लकीर को जितना मिटा रहा है
ऊँचा न होकर भी ऊँचा नजर आ रहा है


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801





























Wednesday, 7 December 2011

(A1/39) मैंने चाहा भी तो यही था ...

मैंने चाहा भी तो यही था ...


मुझे  याद हैं वो दिन
जब सिर्फ दो दिनों की मुझसे जुदाई
तुम्हे लगती थी सदियों की जुदाई
और बेचैन तुम 
पूंछते फिरते थे 
मेरे इस्ट-मित्रों , नातेदारों रिश्तेदारों से
मेरी खैरियत की खबर 

लगा देते  थे फ़ोनों  की झड़ियाँ
पापा आप कहाँ हैं ?
पापा आप कैसे हैं?
सर आपको क्या हुआ ?
सुना है आपकी तबियत नासाज है!
भाई  जी  कहाँ हो?
अरे भूल गए क्या!
अमा कब मिलोगे, मुद्दत हो गयी
फिर  समय  के साथ  तुम चढ़ते  गए
सीढ़ियों  पे  सीढियां 
उसी कल्पित आकाश की ऊचाइयों में 
फिर भी अक्सर आते रहे तुम्हारे पत्र 
तुम्हारे लम्बे पत्रों पर बिखरे होते थे 
तुम्हारे प्रेमाश्रु शब्दों की तरह 
तुम्हारे, मेरे प्रति; प्रेम के प्रतीक बनकर ....
जैसे जैसे तुम सीढियां चढ़ते जा रहे थे 
उससे  भी कहीं  द्रुत  गति  से 
कम  होती  जा रही  थी 
डाकिये की दरवाजे  पर होने वाली दस्तकें 
और छोटे  होते जा रहे थे तुम्हारे पत्र
सिमटते जा रहे थे प्रेम प्रतीक प्रेमाश्रु....
अब एक जमाने से नहीं सुनी है मैंने
डाकिये की दरवाजे  पर  दस्तक 
अब मोबाइल खनकते  हैं
और मिलते हैं महज औपचारिकता निभाते
एस ऍम एस बधाई संदेशों की तरह
या फेसबुक पर तुम्हारी 
सफलता की पायदान पर 
कदम स्थापित करती हुई तुम्हारी तस्वीरें
किन्तु जब बंद हुए थे तुम्हारे पत्र
मुस्कराहट मेरे होंठो पर थिरकी थी
जब बंद हुए थे तुम्हारे एस ऍम एस
मैं मुस्कुराया था
मैं हंसा था जब तुम लगा रहे थे
फेसबुक पर अपनी सफलता की तस्वीरें
लेकिन जब तुम गुमनाम हो गए
समझ गया मैं की तुमने चढ़ ली हैं साडी सीढियां 
जान लिया,  की चूम लिया है  तुमने, 
अपने होंठों से; अपनी कल्पनाओं का आकाश

आज मेरा मन गदगद हो गया है 
फूट पड़े है  मेरी आँखों से अश्कों के झरने
क्योंकि शायद
एक पिता,
एक दोस्त,
एक गुरु के रूप में,
मैंने चाहा भी तो यही था ...............


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801


























Saturday, 3 December 2011

(A1/40) अभागा मजदूर



एक छोटी झोपडी में
एक छोटा सा दिया
जो सतत लड़ रहा है 
गहन तम से...
छेदों वाली थाली में
एक रोटी और
थोडा सा नमक लेकर
मलिन बस्त्रों और गमछे में
अपने  घुटनों को  पेट से सटाए
देख रहा है
झोपड़ी के सामने से गुजरता
पंक से परिपूर्ण पथ
और कोल्हुओं के बैल जैसा
एक सीमित सी परिधि में
खोज रहा है 
छांव  सुख की
सोच रहा है ......
कितने कूप खने
कितने बाँध बांधे
पर प्यासा हूँ!
याद आ रही हैं
रसालों से लदी
आम्र-तरु-साखें
जिन्हें सींचा था कभी 
अपने लहू से
खुद अतृप्त रहकर....
किन्तु आज भी
मालिकों के खौफ
बिष में बुझे शब्दों
हर पल होते मान -सम्मान के  हनन से
तिल- तिल जलता हुआ
पलकों को झुकाए
याचकों सा हाँथ फैलाये
डूबता जा रहा है कर्ज में स्वयं
दूसरों की तृप्ति का पर्याय
अभागा  मजदूर 




कॉलेज जीवन की एक कृति




डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, 9839167801
































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